मां गंगा का नीर है
मां गंगा का नीर है
मां गंगा का नीर है व मां बरगद की छांव.
शीश झुकाता मै वहां जहां हैं मां के पांव.
जनम दिया बडा किया यही जग की रीत.
अनमोल सदा होती यहां मां बेटे की प्रीत.
बेटा घर पहुंचे नहीं तो मां रहती बेचैन.
हर पल डेहरी ताकते है मां के सूने नैन.
इस धरती में मां रही ईश्वर का एक रूप.
सदा छांव देती हमें वत्सल्य स्नेह स्वरूप.
जग मे पूजा जाता है मात-पिता का कद.
सफल सदा होते वही जिनपे है हस्त वरद.
पल पल प्रेम उड़ेलती हो पूत कपूत सपूत.
मां के अंदर छिपा हुआ परम पिता का दूत.
मां तो केवल मां होती है सदा हुई जयकार.
सुखी वो ना कभी रहा जो करता प्रतिकार.
स्वर्ग से बढ़ कर हुआ, जब माँ का स्थान.
तब से जीवन का हुआ, नित नूतन उत्थान..
जिसने समझा यहाँ पर, अपनी माँ की पीर.
उसको मीठा लगने लगा,आँखों से बहता नीर.
घर औ बाहर दीजिये,अपनी माँ को सम्मान.
निश्चित ही पा जायेंगें,जग से अपना मान..
माँ का आँचल हो गया,जैसे खुला आकाश.
जिसके हर कोने होता एक अटूट विश्वास..
माँ जाने निज बेटे का, छिपा हुआ हर भेद.
माँ की वंदना कर रहे,आदि काल से वेद.
होठों ने जब लिया है,दिल से माँ का नाम.
रूह अचानक कह गई, हो गए चारो धाम.
anil ayaan satna