मां को समर्पित
अतीत के झरोखों से यादो के धुन्ध में झांका
तो धुंधली सी छाया में , मां का चेहरा था नज़र आया
उन्ही के कारण ही तो, मैने ये अस्तित्व है पाया
समय के वेग में धूमिल हुआ मेरा वो बचपन का साया,
जिसको था माँ ने अपने हाथों से सजाया,
कड़कती धूप हो या ठिठुरती रात का धना अंधेरा
माँ ने था कितने प्यार से अपने आंचल में सुलाया।
प्यार से दुलारते कभी चुकते नहीं थे वो हाथ
तभी तो उनकी याद ने है आज इतना रुलाया
उनके ममतामयी स्पर्श ने था, हर कष्ट यूं ही मिटाया
सीप में मोती समान स्वयं को था सुरक्षित तब पाया
जब था सिर पर मेरी प्यारी माँ का साया।
उनके दिये संस्कारो को ही तो , मैंने है आज अपनाया
तभी तो सबको है,अपने इतना करीब पाया
सम्भव नही है,भूल पाना तुझे ए माँ
तभी तो आँखो से पानी आज भी है छलकाया।
*डॉ. कामिनी खुराना
( एम.एस., ऑब्स एंड गायनी)