मां को नहीं देखा
माँ
बहुत सी कविताएँ लिखी
बहुत सी कहानियां पढ़ी
माँ को नहीं पढ़ा
फूल देखे, सितारे देखे
गागर देखे, सागर देखे
मां को नहीं देखा
होम किये, अनुष्ठान किये
पूजा की, नमाजें पढ़ी
मां को नहीं पूजा
बच्चे देखे, पत्नी देखी
दोस्त देखे, दुनिया देखी
माँ को नहीं देखा
जग हँसा, शब्द रूठे
आँचल में खेले खूब
माँ को नहीं सोचा
कुछ किया, अहसान किया
पिया दूध , फ़र्ज़ कहा
वो कमरा नहीं देखा
दुआ की, उपाय किये
पंडित देखे, मुल्ला देखे
वो जन्नत नहीं देखी।।
सूर्यकान्त