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13 May 2024 · 3 min read

मां के शब्द चित्र

मां

आओ मां का चित्र बनाते हैं

एहसासों में रंग भरते हैं

याद करो, वह दिन

जब तुम कोख में थे

कितनी पीड़ा में थी मां

जैसे काट लिया हो उसको

दस लाख चीटिंयों ने..

वह हंसती थी

दर्द सह लेती थी

क्या बना सकते हो यह चित्र…??

दूसरा शब्द चित्र

याद करो , वह पल

जब तुम पैदा हुए..

बाजी बधाइयां,

बंटी मिठाइयां

तब तुम

कुछ नहीं समझते थे

सिर्फ मां को समझते थे

पुचकाने पर हंसना

भूख लगे तो रोना

मां के आंचल में छुपना

दूध पीना और सो जाना

क्या बना सकते हो चित्र…

तीसरा शब्द चित्र

याद करो वह क्षण

जब तुम चलना सीखे

दीवार के सहारे खड़े थे

पग दो पग चले, लड़खड़ाए

सामने बैठी मां ने अंक में ले लिया

क्या बना सकते हो यह चित्र…

चौथा शब्द चित्र

तुम स्कूल गए..

तुम्हें नाम मिला

लंबी फेहरिस्त थी नाम की

मां ने सबसे प्यारा नाम छांटा

आफताब लिखा, महताब लिखा

हिना लिखा, महजबीं लिखा

ज्योति, अर्चना, शिल्पी, महिमा

मानस लिखा, उद्भव लिखा

राम लिखा तो कृष्ण लिखा

मोहम्मद लिखा हुसैन लिखा

कोई कहता.कितना प्यारा

बच्चा है…तो मां लाल मिर्च जलाती

या नजर का टीका लगाती…..

क्या प्यार के इस कैनवास पर

चित्र बना सकते हो…

पांचवा चित्र

सपनों को पंख लगे

तुम बड़े, बड़े होने लगे

मां तुमको निहारती

पिता तुममें अपना

अक्स देखते..

तुम पेपर देने जाते तो

मां दही बताशा खिलाती

कुछ पैसे निकालकर

मंदिर में रखती हे भगवान

बच्चे का पेपर अच्छा करना

क्या इसका चित्र बना सकते हो…

छठा शब्द चित्र

तुम आगे बढ़ते गए, बढ़ते गए

तुम इंजीनियर, डाक्टर, अफसर बन गए

शादी हो गई, दुल्हन आ गई…

नाती, पोते आंगन में खेलने लगे

मां बच्चों को अपलक निहारती,

तुम मोबाइल पर लगे रहते

बहू आराम फरमा रही होती

मां इंतजार में रहती, बात खत्म

हो तो मैं उसको बताऊं…

बात खत्म नहीं होती तो

मां रसोई में जाती… हाथ में

थाली होती या हलुआ..

सुन बेटा

तेरे लिए मैंने यह बनाया है

वह खाने की जिद करती

और तुम उसको झिटक देते

क्या इस एहसास का

चित्र बना सकते हो..

सातवं शब्द चित्र

मां बीमार रहने लगी

चश्मा टूट गया..

कभी पूरा घर उसका था

वह अपलक दीवार देखती

अपने सुहाग को तलाशती

सूनी दीवारें थीं, सूना घर…

बस, एक ही आवाज थी…

आपको कुछ नहीं पता…

क्या इसका चित्र बना सकते हो….

आठवां शब्द चित्र

उस दिन तेज बारिश थी

बिजली चमक रही थी…

बहू बच्चे सो रहे थे…..

मां जाग रही थी….बहुत देर हो गई

बेटे की गाड़ी अभी तक नहीं आई

बंद कमरे की खिड़की खोलकर

वह सड़क पर देखती रहती….

अब आए उसकी गाड़ी, अब आए

रात के तीन बजे थे..तुम आए..

बेटा बहुत देर हो गई आने में…

तुम बिना बोले, बहू के पास चले गए

क्या इसका चित्र बना सकते हो….

नवां चित्र

उनके जाने के बाद

घर में आंगन नहीं रहा

दीवारें बड़ी हो गई..

फूल मुरझा गए

कांटे खिल गए

तीनों बेटे अलग-अलग

कभी गेट टू-गैदर होता

सब मिलते, हंसते-गाते

फिर अपने घर चले जाते

वो रसोई कह रही थी…अम्मा

तुम तो सबको खिलाती थीं

बच्चों ने तुमको एक बार भी नहीं पूछा

क्या इसका चित्र बना सकते हो…..

दसवां चित्र

आओ, मां का चित्र बनाते हैं

वृद्धाश्रम में पलती मां का

रोती, बिलखती मां का

एहसासों के सहारे जी रही मां का…

बच्चों के सहारे जी रही मां का….

आसमान ने देखा धरती पर…

भगवान भी बोल पड़ा…हे राम

चित्र बन गया।। मां, मां, मां।।

सूर्यकांत द्विवेदी

Language: Hindi
105 Views
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