मां के रूप
जननी, जन्म-भूमि, जगत – जननी,
सभी कहलाती हैं हमारी – ‘मां’।
जनती है, परवरिश करती हैं,
अच्छे संस्कार भरती हैं – ‘मां ‘
माटी का चंदन लगा लो
वसुंधरा है हमारी धरती – ‘मां’
दानव से मानव को बचाती हैं
कल्याणी है हमारी देवी- ‘मां’
किस समय क्या चाहिए?
सब जानती है अपनी- ‘ मां’
माखन नहीं खाया है तुने
मान लेती है ममतामयी- ‘ मां’
दूर रहो या रहो पास
दुआ करती है हरदम – ‘ मां’
मना लो मन से/ दिल से
मनोकामनाएं पूरी करती है- ‘मां’
उठा लो गैरों को/ दिनों को,
तुम्हें थाम लेती है – ‘मां’
उठा लो हाथ अपना ऊपर
डालियां झुका देती है- ‘ मां’
चढ़ते चढ़ते चढ़ जाओगे
मंजिल से मिलाती है मां
छूट जाते है संगी – साथी
बिछूड़ों को मिलाती है – ‘मां’
सीमाओं की सुरक्षा करने
सपूतों को बुलाती है भारत- ‘ मां’ ‘
संकल्प करो / प्रण करो
प्रयास को सिद्धि देती है शक्ति – ‘मां’
झुकते हैं किसान खेतों में
सोना उपजाती है धरती – ‘मां’
झुका लो शीश अपना
अशेष आशीष देती है- ‘ मां’
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@स्वरचित: घनश्याम पोद्दार
मुंगेर