मां की यादों को लाया हूं
झोला भर कर मां की यादों को लाया हूं
तोहफा अनमोल दिल से इन्हें लगाया हूं
उन्हें अनजाने में शैतानियां से सताया हूं
नादानियों से कई बार मां को रुलाया हूं
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न सामना कर सकता तो डोल आया हूं
न चाहते हुए भी झूठ को बोल आया हूं
जाने की जगह दोस्तों का घर बताया हूं
देरी से घर पहुंचने पर बहाना बनाया हूं
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दुःख आना सहना तुमसे सीख आया हूं
ये आंसुओं का शैलाब मैं भीग आया हूं
सतत काम को करना ये जान आया हूं
कभी खाली न बैठना यह ज्ञान लाया हूं
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तुम्हारे रूप में अनेक रूपों को पाया हूं
कभी मीरा तो कभी शबरी को पाया हूं
तुम्हारे साथ मन्दिर में जा कर आया हूं
तुमसे तो मानस की चौपाइयां पाया हूं
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पीपल के पेड़ों पर खूब जल चढ़ाया हूं
सभी नदियां गंगा- यमुना भी नहाया हूं
न छूट पाया कोई पुण्य सारे कमाया हूं
यह सब कुछ तो अपनी मां से पाया हूं
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मां एक तुम से तो जीवन दान पाया हूं
तुम से अच्छे होने का वरदान पाया हूं
तुम्हारी बदौलत मान सम्मान पाया हूं
जीवन भर जूझने का विज्ञान पाया हूं
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और तुम्हीं से तो अपना नाम पाया हूं
आदमी हो गया इसका ईनाम पाया हूं
तुम से अच्छे बुरे की पहचान पाया हूं
मेरे लिए क्या ठीक यह जान पाया हूं
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जमीं आकाश सब जगह ढ़ूढ़ आया हूं
चांद सितारों सभी से पूछकर आया हूं
मां से अच्छा न किसी को भी पाया हूं
अत चरण रज को माथे पर लगाया हूं
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रामचन्द्र दीक्षित’अशोक’