मां की चाहत
मां तेरा क्या कसूर,
बेटा तुझे पहचान न सका,
बुढापे में तुझे अपना न सका,
देख लेना होगा वैसा उसके साथ जरूर।
बड़ी विडंबना है इस जग की,
जो सींचे इस पौधे को
उसे फला लाभ न होता है,
मां करती थी जिसके लिए
रात दिन एक
वही चैन से अब सोता है,
जिसे समझती थी नाको का बाल
वही निकला नासूर।
क्या किया नही तूने तनुज के लिए
भूखी छठ इतवार,
कोई कसर छोड़ा नही तूने
मानी न कभी हार,
पर नासमझ यह समझ न पाया बन गया कंसासुर।
बड़ा अचरज होता है
ममता का मोल कैसे चुकाएगा,
हमने सोचा था बेटा का फ़र्ज निभाएगा,
पर सोच आज सच हो न सका,इस बात का है हमको गुरूर।
मां इसमें तेरा नही है दोष
समय कर देता है सबको मदहोश,
जो हाथ पकड़ चलना सिखलाए
आज हाथ जोड़ वही गिड़गिड़ाए,
होता है दुःख बहुत, जब सपना हो जाये चकनाचूर।
मां तेरा क्या कसूर….
साहिल की कलम से .?