मां की “आह”
मां तू मेरी फिक्र न करना
पहर ढले आ जाऊंगा
मुझको सारी उम्र जगाकर
चला गया बेटा मेरा….
महज तिरंगा लहराने पर
गद्दारों की तबियत बिगड़ी
अपनी ही गलियों मे घर मे
छला गया बेटा मेरा…..
एक गया तुम खैर मनाओ
दूजा चंदन आता है
मेरे ही घर मे तू बैठा
मुझको आंख दिखाता है….
बकरे की अम्मा यूं कबतक
अपनी खैर मनायेगी
ये आधी आबादी ही तुमको
चबा चबा कर खायेगी …..
तुम जेहादी कुकर्मुत्तों को
जन्नत तो दिखालायेगें
इसी धरा पर हूरों संग
निकाह तेरा पढ़वायेगे ….
दो दो मुट्ठी कीचड़ तुमपर
छिडकने हमभी आयेगे
अबकी बार सामना होगा
कैंडल नहीं जलायेगे….
दोज़ख से बद्दतर न कर दें
हम तेरे अरमानों को
ढूढ़ ढूढंकर भूनेगे तुम
जेहादी शैतानों को
मां की आह तबाही होगी
किले तेरे दहलाने को
तुम गिनती में ज्यादा हो
अच्छा है मन बहलाने को …..
प्रियंका मिश्रा_प्रिया
अलीगढ़