मां की आंचल की कोर
ना खींचों ऐसे रिश्तों की डोर
कि टूटकर हम, नदी के हों जाएं दो छोड़।
हो सके तो थाम लो मेरी ऐसी बांहे
जैसे बचपन में पकड़तें थे हम सभी,
मां की आंचल की कोर।।
ना खींचों ऐसे रिश्तों की डोर
कि टूटकर हम, नदी के हों जाएं दो छोड़।
हो सके तो थाम लो मेरी ऐसी बांहे
जैसे बचपन में पकड़तें थे हम सभी,
मां की आंचल की कोर।।