मां का घर
बचपन की यादों का सफर
स्वपन सा सुन्दर मां का घर
उस घर के हम शहज़ादी थे
ना किसी रौब के आदी थे
खिलौनो भरा संसार था
खुशियों का ही अम्बार था
जिम्मेदारी न आती थी नजर,
स्वपन सा सुन्दर मां का घर।
खेत-खलिहान पगडंडी पर
मौज मस्ती और बेफिक्र
कोयल की नकल उतारते
तितली के पिछे भागते
कहां पहुंचे जब निकला पर
स्वपन सा सुन्दर मां का घर
समय के साथ क्या न बदला
हो जाता उदास मन पगला
आंख से आंसू निकल जाता
मचलता फिर संभल जाता
क्या हो वक्त थम जाये अगर
स्वपन सा सुन्दर मां का घर
नूर फातिमा खातून” नूरी”
जिला -कुशीनगर