मां अंबे शक्ति दे दो
मां अंबे शक्ति दे दो
निर्बल मन घबराता है
इस अथाह संसार की
थाह नहीं पाता है
चमक दमक देख दुनिया की
मूरख मन ललचाता है
चैन नहीं पाता है पल भर
मुझे बहुत दौड़ाता है
माता ऐसे भोग जगत में
योग मुझे ना भाता है
कैसे बांधें इस मन को
यह मन नहीं बंध पाता है
सुनता नहीं आत्मा की
यह अपने मन की करता है
रहता है अतृप्त जगत में
तृप्त नहीं हो पाता है
मां शक्ति दो मेरे मन को
मन निर्मल हो जाए
मिट जाए सारी तृष्णाएं है
सुख शांति धरा पर आ जाए
जय माता दी
सुरेश कुमार चतुर्वेदी