मांगों वत्स नि:संकोच !
मांगो , वत्स नि:संकोच !
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नीति-नियामक काल-कर्म ,
विशुद्ध सन्निधिकारक सत्कर्म ।
मांगो सुहृद स्वच्छ आसन ,
नीति-नियंता राज सिंहासन !
असफलता का असि-धार,
या विराट जीवन का ललकार !
श्रद्धावनत् अविचल हिमगिरि शिखर,
ले चाह ! स्वीकार पुण्य तेज प्रखर !
दया-दान-त्याग-धर्म ,
पुरूषार्थ चतुष्टय पुण्य मर्म ,
नीति-नियामक काल-कर्म ,
विशुद्ध सन्निधिकारक सत्कर्म !
शौर्यपूरित,प्रलयवह्नि – विकराल काल का राज,
मांग बहुत हृदय द्रवित है आज !
मांगो ब्रह्माण्ड का स्फीत सुरम्य प्रकाश ,
ज्ञान और विज्ञान के आलोक का आकाश !
रवि सदृश आलोकित समुन्नत भाल,
प्राण के सागर में उत्ताल-उच्छाल !
सदा धरित्री पर सरस अमृत की धार ,
संताप- संतप्त हीन , चाह ले सुशीतल संसार !
मांगो कुछ क्षण का उदय-अस्त ;
दुर्निवार जीवन का पथ प्रशस्त !
लघुग्रह भूमण्डल में दृढ़ स्नेह का श्रेय ,
व्योम से पाताल तक सकल सृष्टि का ध्येय ,
मुष्टि में विकराल और सिमटते दिक्काल का ज्ञेय ;
मांगो धरा पर नित विघ्न कुछ दुर्जेय !
खड़ी कराल विस्मय दीपित दिशाएं ,
मांगो प्रलय की काल रेखाएं !
विधु-तनया संग चन्द्रिका विहार,
रुप-रंग-रस-गंध-स्पर्श साकार !
नीहार आवरण में अम्बर के पार ,
तलातल-अतल-वितल-सुतल में संचार !
मुक्त हो कर मांग ले अस्त्र-शस्त्र का संचार ,
पुण्य मही पर करने हिंस्त्र भाव शत्रु का संहार !
मांगो कुछ क्षण का उदय-अस्त,
दुर्निवार जीवन का पथ प्रशस्त !
मांगो बाहों में मारूत गरूड़ गजराज का बल,
शिला सा वक्ष,सिंधु सा उद्दाम ,अपार संबल !
मांगो जग दूर्धर गति अनुकूल ,
जीवन रेखा आनन्द-कानन का फूल !
हरने गतिरोध , हृदय-विदारक शूल ;
मांगो मेरे पूत: चरणों की धूल !
यह ब्रह्मतेज है स्वर्णप्रभा सी ,
अगम-अगाध-अप्राप्य ज्ञान भण्डार ;
ज्ञान-विज्ञान पुरातन संधान ले ले ,
या कर ले एकछत्र राज चतुर्दिक संसार !
मांग अकण्टक पुण्य प्रदेश ;
स्वधर्म निरत अखण्ड स्वदेश !
✍? आलोक पाण्डेय ‘विश्वबन्धु’
अश्विन शुक्ल महानवमी ।
वाराणसी,भारतभूमि