माँ
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सुखद और सुंदर एहसासों की
जीती जागती तस्वीर है माँ ”
कितना पवित्र और पाक ..
.सा रिश्ता…है ना .
माँ और उसके अंश का..
….”माँ”होना..माँ बनना
कोमल नन्हें से…जीव को….
खुद के वज़ूद में पालना
और..आकार में ढालना….
मासूम अनुभूतियों से..
हर्षित मन अनूठे गौरव से
पूर्ण..प्रफुल्लित तन
स्नेहमयी ममता मयी..
.ईश्वरी स्वरूपा “माँ”. देखो….ना
एक कोंपल को फूलों सा
सहेजती और संवारती है “माँ”.
✒ निधि भार्गव