*माँ*
माँ
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माँ ते बड़ौ न कोई जग में, मैया सृष्टि की आधार ।
सृष्टि की आधार रे मैया सृष्टि की आधार ।।
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नौ महिना तक कोख बसावै, फिर जनमै जीवन कूँ,
आँचर ते ढक दूध पिवावै, सेहै रे बचपन कूँ,
ममता की मूरत पै जाऊँ ,बार-बार बलिहार ।
माँ ते बड़ौ……।।१
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खुद सोवै गीले में देवै, सूखौ हमें बिछौना,
नजर बुरी ना लगै धरै, काजर कौ भाल दिठौना,
मालिश करकै पुष्ट बनावै, देह सुघड़ तैयार ।
माँ ते बड़ौ ……।।२
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जब हम पै चढ़ जाय जवानी, हँस-हँस ब्याह करावै,
छोरी कूँ दामाद पूत कूँ परी दुल्हनियाँ लावै,
नाती पोते देख खिलै ज्यों , फूलन की सी डार ।
माँ ते बड़ौ……।।३
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राम-कृष्ण से पूत जनै है, बलदाऊ से भैया,
बेटी बहना भार्या ये ही , पीढ़ा बैठी मैया ,
देख भये दुसमन छोरिन के, दुखी भयौ करतार ।
माँ ते बड़ौ……।।४
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जहाँ नारी कौ मान न होवै, ऊ घर नरक समानी ,
नारी ही लछमी है घर की , बात न काहे मानी ,
नारी कौ सम्मान होय ,तहाँ भरैं कोष भंडार ।
माँ ते बड़ौ ……।।५
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कैसौ बुरौ जमानौ आयौ, कली कोख में कुचलें,
कहाँ ते आवैं बहू रे छोरा ब्याह करवे कूँ मचलें ,
क्यों नारी के बैरी है गये ,घर-घर में नर-नार ।
माँ ते बड़ौ……।।६
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जानें हमकूँ जनम दियौ ऊ , मैया भी है नारी ,
अबहु न चेते भैया मेरे ,बहुत होयगी ख्वारी
संतानन में भेद करै जो, वा नर कूँ धिक्कार ।
माँ ते बड़ौ……।।७
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तन दीनौ पालन कीनौ है, याकी मालिक मैया ,
कबहु करज ना उतरै माँ कौ, कहा सोचै तू भैया ,
‘ज्योति’ कहै मैयाय नाय पूजैं ,वे जन निपट गँवार ।
माँ ते बड़ौ ……।।८
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-महेश जैन ‘ज्योति’
मथुरा ।
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