माँ……
मेरे बचपन की सब यादें
जहाँ से, होकर गुजरती है ।
हर ख्वाहिश, हर मन्नत मेरी
आँखों में जिसके बनती सवरती है ।
मेरे चहरे की रंगत से जो ये जान लेती है
मेरी ख्वाहिश मेरी चाहत,कब कहाँ जाकर ठहरती है।
बिना माँगे पूरी करती हर ख्वाहिश मेरी
मेरी खुशियों पर जो अपनी जान छिड़कती है।
नजरअंदाज कर तकलीफे खुद की,झूठी सी मुस्कान लिये
मुखातिब जब भी होती है,हँसती है ।
ये है वो एहसास जो अब तक
बन कर ख़ुदा की रहमत ,हम पर बरसती है।
लिख ना पाया ,कोई अब तक मुकम्मल इसे
ये ख़ुदा की वो नेमत है …..
जो कम ना होती कभी ,दिन रात बढ़ती है।
अगर कहे कोई बयां कर ,दो लफ्जों में रहमत ख़ुदा की
तो लूँ वो नाम मै ,दुनिया जिसे माँ….. कहती है।
:-सैयय्द आकिब ज़मील”कैश”