माँ
माँ तुम हो सबसे प्यारी
लोरियाँ खूब सुनाती थी|
जब मैं छोटा बच्चा था
लाड प्यार मैं पाता था |
बचपन के दिनो में
गुडियाँ गुड्डे दोस्त बनाता|
तुम्हारी ग़ुस्से वाली डाट से
इधर – उधर हूँ छुप जाता ।
अपने प्यारे हाथों से
खाना मुझको तुम रोज़ खिलाती
हाथी , शेर से मिलवाने
गिरजाघर की सेर कराती ।
सवेरे उठकर माता – पिता को नमन कर
संस्कार से बंधे रहना तुम सिखाती ।
दुनिया के अच्छें बुरे ज्ञान से अवगत कराती
प्रथम पाठशाला हमारी तुम कहलाती ।