माँ
तेरे हाथों की सिकुड़ी हुई
रेखाओं के बीच
मेरे घर का नक़्शा
छह कमरों से
खींच दिया है तूने पतली सी
पगडंडी को आंगन की
तुलसी की ओर
वहीं से फैली हुई है
तेरी परछाई चारों तरफ
मंदिर में रखा हुआ
भागवत तू,गीता भी तू
लक्षी पुराण के पहले पृष्ठ से
तू व्याप्त,सावित्री व्रत
पुस्तक के शेष पृष्ठ तक
तेरी सांसों से सुनाई देती है
दुआएँ ,मंत्र के जैसे
तेरे स्वर में सुनाई देती है
संगीत की ध्वनि जब तू
आवाज देती है, बिल्ली को
“आजा रे,भात, माछ खा जा रे”
तेरा नन्हा सा आंचल
आकाश से विशाल और
पृथ्वी जैसा सुरक्षित
आजकल तेरे हाथ कांपने लगे
कुछ दिन पहले की तो बात है
संभाल रही थी तू
हम चारों को
एक ही हाथ में
तु नींद में भी जागती है
न बोलने वाली बातें भी
समझ लेती है
मेरा बचपन है सुरक्षित तेरे पास
पता है मुझे, मैं बूढ़ी नहीं हुँगी
जब तक तू है, मेरे पास।
***
पारमिता षड़ंगी