माँ
लब्जों से कैसे करूँ,माता का गुणगान।
लगता माँ के सामने, फीका-सा भगवान।।
लाड़-प्यार से जो सदा,देती सच्चा ज्ञान।
सुत हित में सुख-दुख सहा,दिया अभय का दान।।
भूखी-प्यासी रात- दिन,सेवा में तैयार।
रुग्ण -मनौती माँगती,माता बारंबार।।
नित दिन प्रेमामृत पिला,किया सतत् कल्याण।
हर लेती सारी तपिश,माँ ही देती त्राण।।
रहे ध्यान माँ ने दिया, इस जीवन को अर्थ।
गलती से मत सोचना,माँ है घर में व्यर्थ।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली