माँ
देकर मुझको सूखा बिस्तर गीले पर सो जाती माँ
मैं सो जाऊ गहरी नींद में खुद लोरी हो जाती माँ
माँ डाली मैं फल के जैसा
हर दम उससे चिपका रहता
मैं रोऊ तो माँ भी रोए
मैं खुश तो खुश हो जाती माँ
देकर मुझको सुखा बिस्तर गीले पर सो जाती माँ
मैं सो जाऊ गहरी नींद में खुद लोरी हो जाती माँ
कभी हाथ कभी कंधे पर ले कितनी राते जागी थी
मेरे उठने की हल्की आहट पे सब कुछ छोड़ के भागी थी
सारी रात ले हाथो में मुझको एक पल सी रात बिताती माँ
देकर मुझको सुखा बिस्तर गीले पर सो जाती माँ
मैं सो जाऊ गहरी नींद में खुद लोरी हो जाती माँ
ये सोचूँ मैं माँ की खातिर आखिर क्या कर पाया हूं
जब से सीखा चलना मैंने माँ से दूर ही आया हूँ
दूर बैठ कर फिर भी मुझ से मेरा भला मनाती माँ
देकर मुझको सूखा बिस्तर गीले पर सो जाती माँ
मैं सो जाऊ गहरी नींद में खुद लोरी हो जाती माँ
—ध्यानू