माँ
रेतीले पथ पर
जेठ की धूप मे
चेतना का दीप जगाए
हर पल मुस्कराए
संस्कार की छाँव में
संस्कृति के गाँव में
सर पे सूरज उठाए
शील की टोकरी सजाए
थामें नवांकुर का हाथ
जैसे कृष्ण और पार्थ
चल रही है अथक
छुपाए हर कसक
ताकि नवजीव के जीवन में
शुभ प्रभात की बेला आए
सभ्यता के गगन में
सूरज सा जगमगाए।
संदीप शर्मा