“माँ “
सर्वप्रथम माँ के चरणों में 2 पंक्तियाँ अर्पित करती हूँ..
“हे जन्मदायिनी मात मेरी, मैं तुहिर कण तू पात मेरी।
मैं चंचल सरिता वेग लिए, तू मुझको संभाले थात मेरी।। ”
रचना-
“माँ तू सर्वश्रेष्ठ”
तेरे सजल नैनों से, झलकती सर्वदा ही प्रीत है।
हर पल लाड़-दुलार, माँ तेरे आँचल की रीत है।।
तेरी काया में रह मैंने, जन्म तुम्हीं से पाया है।
तू ममता की मूरत, तेरा आँचल मेरा साया है।।
चलना बढ़ना सीखा, पहला ज्ञान तुमसे पाया है।
दुःख दर्द बिसरा तुमने, शिखर हमें पहुँचाया है।।
मायूस हुई मैं जब तूने, हौसला मेरा बढ़ाया है।
माथे पर आई शिकन को,पल में दूर भगाया है।।
न थकती मेरी शैतानी से, नखरे रोज उठाती है।
चाहे जितना परेशान करूँ, नाराज न ये होती है।।
आद्रता स्वयं समेट मेरी, शुष्क में मुझे सुलाया है।
एक एक कौर मुख में, खाना भरपेट खिलाया है।।
विपदा आई बाल पर, ममता ढाल बन जाती है।
रक्षक बन संग्राम करें, यमराज से ठन जाती है।।
माँ तुमको लिखने बैठूँ, स्याही कम पड़ जाती है।
शब्द नहीं मिलते यारों, लेखनी खुद बढ़ जाती है।।
मेरे जीवन का पल पल, माँ तेरा ही कर्जदार है।
बुना भविष्य सुनहरा, मुझ पर अनंत उपकार है।।
मेरी हर रचना का बस माँ, तू ही एक आधार है।
शब्दों में पिरोऊँ कैसे तुम्हें, तू श्रेष्ठ रचनाकार है।।
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित…
रेखा कापसे “काव्या_रेखा”
पति – कमलेश कापसे
होशंगाबाद मप्र