माँ
#मातृ_दिवस
माँ तो ममता की मूरत है।
चाहे कैसी भी सूरत है।
जैसा सुख माँ के आँचल में।
क्या है दूजा भूमंडल में?
पूत कपूत सुने बहुतेरे।
माता न कुमाता जग में रे।
खुद रूखा – सूखा खा लेती।
बच्चों को न जरा दुख देती।
माँ तो करुणा की सागर है।
ये तो हर जगह उजागर है।
माँ बिन घर सूना सा लगता।
बिन उसके चित्त कहाँ लगता।
विनय कुशवाहा ‘विश्वासी’
देवरिया (उत्तर प्रदेश)