माँ
खूं अपना पिला कर तुम्हें जिस माँ ने संवारा
छोटी सी अज़िय्यत भी न दो उसको खुदारा
उठती है नजर जब भी मिरी माँ की तरफ तो
लगता है जैसे हो गया जन्नत का नजारा
सुख में तो माँ की याद भी आई नहीं कभी
तकलीफ आई तुझपे तो अब माँ को पुकारा
जिस बच्चे को देती हैं माँ दिल से दुआयें
उसका ही चमकता है क़िस्मत का सितारा
तू चाहे सितम जितने कर माँ पे मगर “आतिफ़”
थोडा सा भी दुख तेरा नहीं उसको गवारा
इरशाद आतिफ़ अहमदाबाद