Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 Aug 2017 · 3 min read

माँ

????ॐ नमःशिवाय????
लघु कथा ,
आज दुर्गा बहुत परेशान है।रात के दो बज रहे है।धरती -आकाश सब सो चूके है।पर,उसके आँखों में नींद कहाँ,गला दर्द से रूँध गया था।सीने के दर्द से छाती फटा जा रहा था।दिल कर रहा है अभी चिल्लाकर रो दे।पर बगल मे पाँच साल की नन्हीं परी जो सो रही है ।वह जाग जाएगी।वह रो भी नहीं सकती है। वह गहन सोच में पड़ी है कि अब दुर्गा क्या करे? उसे पता चल चुका है कि उसके गर्भ में जो नन्हीं जान पल रही है वह बेटी है।घरवालों के दबाब में आकर पति के साथ पता कराने चली तो गई पर अब लड़की है। क्या करे? शाम को मैके भी फोनकर के पूछी सभी ने कहा खराब कर दे…एक बेटी है,ही दूसरा बेटा होगा तब रखना।बेटी है ,मत रख ।ससुरालवाले का तो समझ में आता है जो कह रहे हैं। दुर्गा को मैके वालों से ऐसी उम्मीद ना थी।ससुराल वाले ना सही कम से कम वो तो साथ देते..।रात इसी ओह -पोह में गुजर गई…।सबेरे उठी पति ने कहा तैयार रहना ।मैं आज आॅफिस से जल्दी आऊगा …डा0 के पास चलना है..।उसने कोई जबाब नहीं दिया …।बेटी को स्कूल पहुचा आई।स्नानकर माँ के आगे जोत जलाकर पूजा करने बैठ गई। वैसे दुर्गा नितकार्य निबटा कर बिना पूजा किये अन्न ग्रहण नहीं करती थी। उसे शिव -पार्वती में बड़ा ही आस्था था।आज तो वह धर्म संकट में थी ।ऐसे में पूजा-पाठ कैसे छोड़ देती। आज तो दुर्गा को पूजा पर बैठने की और भी जल्दी पड़ी थी।कमल आसन लगाकर बैठ तो गई ।पर मुख से एक भी मंत्र का उच्चारण ना कर पाई ।मुँह बंद आँख से आँसुओं की धार बहने लगी।काफी देर दुर्गा इसी अवस्था में बैठी रही।उसके आँसुओं के साथ उसके सारे दुख बह गए।वो निर्णय ले चूकी थी।उसने आँखें खोली और भगवान से बोली आप ने जो फूल मुझे दिया है उसे सम्हालिये और मुझे शक्ति दिजिए।माँ तेरी दुनिया ऐसी क्यों है?मेरे गर्भ में बेटी है तो सब इसे मारने कह रहे है।यही बेटा होता तो इसे कोई नहीं मारता।माँ ऐसा क्योंहै?माँ पर मै तो माँ हूँ।इस अजन्मी बेटी को कैसे मारूँ।अगर आज मैं आवाज ना उठाई तो मैं इसे खो दूँगी।माँ मैं इसे खोना नहीं चाहती।माँ मुझे शक्ति दे कि मैं इसकी रक्षा कर सकूँ।माँ तुने जो फूल दिया है ।उसे सम्महालो माँ।माँ मैनें फैसला ले लिया है मुझे क्या करना है।माँ मेरा साथ देना।माँ बस एक तेरा सहारा है ।दुर्गा का पति आज बहुत ही जल्दी आ गया। उसने कहा- क्या तुम तैयार नहीं हुई चलना है ।जल्दी करो ।मैं तो तुम्हें बोल कर गया था।दुर्गा ने अपनी हिम्मत बाँधी और बोली- मैं नहीं जाऊँगी मै इस बच्ची को जन्म दूँगी ।तुम भी मेरा साथ दो।यह सुनते ही पति आग बबूला हो गया..।ये क्या कह रही हो तुम ..।बेटी को जन्म दोगी पहले से एक है काफी नहीं।दुर्गा गुस्से में बोली- मेरी बेटी ही मेरे लिए सारा संसार है। बेटियां बेटों से कम नहीं| मुझे बेटा की चाह नहीं।हाँ अगर आप इसे मारना चाहते है तो इसके साथ मुझे भी समाप्त करना पड़ेगा।दुर्गा का पति परेशान हो गया वह अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था।पर मन में बेटे की चाह..।क्या करे वह कुछ समझ नहीं पा रहा था।और दुर्गा के ऊपर तो दुर्गा सवार थी ।वह कहाँ किसी की सुनने वाली।पति समझाता रहा पर वह नहीं मानी ।आखिरकार सभी को दुर्गा के सामने हार माननी पड़ी। नौ महीने में दुर्गा के गर्भ से एक सुन्दर पुत्री पैदा ली ।दुर्गा निर्णय ले ली कि वह आगे बच्चा पैदा नहीं करेगी।अब यही दोनों बेटी ही उसकी दुनिया है।दुर्गा का पति भी उससे बहुत प्यार करता था।वह एक अच्छा इन्सान था ।क्योकि उसने दुर्गा के लिए अपने और परिवार की इच्छाओं की कुर्बानी दी।वरना इस कहानी का अन्त कुछ और होता।दुर्गा घर से निकाल दी जाती।दुर्गा मर भी सकती थी।वैसे दुर्गा को इन बातों का तनिक भी डर नहीं था। वह हर तुफान से टकराने को तैयार थी।इन नौ महीनों में उसने बहुत कुछ सहा पर आज अपनी बेटी का चेहरा देख सब भूल गई…।उसके सारे दुख-दर्द उस मासुम के किलकरियों में खो गई….।
ये एक सच्ची कहानी है इसमें कोई मिलावट नहीं ।ना ही कहानी को रोचक बनाने के लिए तथ्यों को जोड़ा गया है।
—लक्ष्मी सिंह?☺

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 693 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from लक्ष्मी सिंह
View all
You may also like:
ईश्वर से शिकायत क्यों...
ईश्वर से शिकायत क्यों...
Radhakishan R. Mundhra
■ एक ही सलाह...
■ एक ही सलाह...
*Author प्रणय प्रभात*
सुन्दरता।
सुन्दरता।
Anil Mishra Prahari
कविता ही तो परंम सत्य से, रूबरू हमें कराती है
कविता ही तो परंम सत्य से, रूबरू हमें कराती है
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
समय बदल रहा है..
समय बदल रहा है..
ओनिका सेतिया 'अनु '
पीताम्बरी आभा
पीताम्बरी आभा
manisha
फितरत या स्वभाव
फितरत या स्वभाव
विजय कुमार अग्रवाल
सावन मंजूषा
सावन मंजूषा
Arti Bhadauria
खंड: 1
खंड: 1
Rambali Mishra
कई बार हम ऐसे रिश्ते में जुड़ जाते है की,
कई बार हम ऐसे रिश्ते में जुड़ जाते है की,
पूर्वार्थ
फिर एक बार 💓
फिर एक बार 💓
Pallavi Rani
2834. *पूर्णिका*
2834. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
Happy Holi
Happy Holi
अनिल अहिरवार"अबीर"
दर्द
दर्द
Bodhisatva kastooriya
निंदा और निंदक,प्रशंसा और प्रशंसक से कई गुना बेहतर है क्योंक
निंदा और निंदक,प्रशंसा और प्रशंसक से कई गुना बेहतर है क्योंक
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
खुद से उम्मीद लगाओगे तो खुद को निखार पाओगे
खुद से उम्मीद लगाओगे तो खुद को निखार पाओगे
ruby kumari
यह आखिरी खत है हमारा
यह आखिरी खत है हमारा
gurudeenverma198
हमारी आंखों में
हमारी आंखों में
Dr fauzia Naseem shad
"हैसियत"
Dr. Kishan tandon kranti
मौसम - दीपक नीलपदम्
मौसम - दीपक नीलपदम्
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
नजर लगी हा चाँद को, फीकी पड़ी उजास।
नजर लगी हा चाँद को, फीकी पड़ी उजास।
डॉ.सीमा अग्रवाल
जब कभी तुम्हारा बेटा ज़बा हों, तो उसे बताना ज़रूर
जब कभी तुम्हारा बेटा ज़बा हों, तो उसे बताना ज़रूर
The_dk_poetry
बुंदेली दोहा-अनमने
बुंदेली दोहा-अनमने
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
छोटी-छोटी बातों से, ऐ दिल परेशाँ न हुआ कर,
छोटी-छोटी बातों से, ऐ दिल परेशाँ न हुआ कर,
_सुलेखा.
महाशिवरात्रि
महाशिवरात्रि
Seema gupta,Alwar
मेरा लड्डू गोपाल
मेरा लड्डू गोपाल
MEENU
जंगल की होली
जंगल की होली
Dr Archana Gupta
शुद्ध
शुद्ध
Dr.Priya Soni Khare
चमकते चेहरों की मुस्कान में....,
चमकते चेहरों की मुस्कान में....,
कवि दीपक बवेजा
*पिचकारी की धार है, मुख पर लाल गुलाल (कुंडलिया)*
*पिचकारी की धार है, मुख पर लाल गुलाल (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
Loading...