माँ
मेरी हँसी तेरी ही पहचान सी होती है ,
तुम नही तो दुनिया ये अनजान सी होती है ।
हर एक माँ को सदा सलामत रखना ए मौला
ये एक माँ ही है जो पूरी जहान सी होती है ।
उनकी हर एक बातें इत्मिनान सी होती है ,
जिस घर में माँ ना हो वो वीरान सी होती है ।
ख़ुदा ने दिया है तुम्हें तो इज्ज़त किया करो
उनकी कमीं हर किसी को रोशनदान सी होती है ।
हर एक दिन उनके बिना बेज़ान सी होती है ,
दिन ढ़लती है मगर शामें बेईमान सी होती है
माँ के लिए वैसे तो कोई दिन मुकर्रर नहीं
हर एक वक्त हमारे लिए इम्तिहान सी होती है ।
ख्वाहिशों को पूरा करने की अरमान सी होती है ,
बचपनों की यादें भी अब उनवान सी होती है ।
मोहब्बतों को अब कही और न ढूंढो ‘हसीब’
ये वो है जहा मोहब्बतों की दुकान सी होती है ।
उनकी मोहब्बत भी सबके लिए आसमान सी होती है,
बहती दरिया भी कभी – कभी तूफ़ान सी होती है ।
माँ के लिए अब और लफ्ज़ क्या लिखूं ,
इक वही है जिसमें सारी बात जहान सी होती है ।
-हसीब अनवर