माँ
एक अरसा हुआ तुझसे बिछड़े माँ
अब वो स्पर्श नहीं मिलता
ना कोई छूता है प्यार से माथा मेरा
ना उलझे बालों को सँवारता है कोई
आखेँ तो यूँ भी थक कर सो जाती हैं
पलकों को अब कोई नहीं सहलाता
पर वो स्पर्श आज भी जिंदा है मेरे अहसासों में
“माँ” सहलाया करती थी माथा
चूम लेती थी पलकें सोते में
भूल जाती थी मैं दुनियाँ का हर दर्द
छुप कर माँ के आँचल की ठंडी छाँव में
अब कोई भी छाँव वो सुकून नही दे पाती
ज़िन्दगी की राहों पर चलते हुए
अक्सर झुलस जाते है पाँव मेरे
पर तेरे आँचल की ठंडी छाँव अब नसीब नहीं होती
पर तेरी दी हुई सीख मेरी हर हार पर संभलने का
हौसला देती है मुझे
अब तो बस इतना याद है कि तू आज भी मेरे आस पास है
ये अहसास मेरे जीने का संबल है
बस इतना ही कहना चाहती हूँ कि तुम ऐसे ही हमेशा मेरे
अहसासों में जिंदा रहना
मीनाक्षी वर्मा