माँ
मां कहती है,देर रात तक जागना
अच्छा नहीं होता सेहत के लिये।
मां हमेंशा उठ जाती है,मुर्गे की बांग पर.
पोंछा लगाती है/बर्तन साफ करती है,नाश्ता बनाती है,
और चाय लाती है मेरे लिये.
जानती है मां
मुझे आराम नहीं मिलता दिन भर.
विवशता के घेरों को
घर से आफिस तक
जानती है माँ।
मां जानती है सब कुछ,
जानती है मेरा मन/मेरी सेहत/मेरी खुशियाँ.
उसके हाथों से
फिसलते हुए मेरी उम्र के दिन
सब कुछ जानते हुए भी
माँ कहती है
रात देर तक जागना अच्छा नहीं होता सेहत के लिये।
अपनी बेटी का सुखी संसार बुनती है माँ दिन भर,
अपने अनुभव के क्रोशिए पर।
उसकी आंखों पर लटका मोतियाबिंद का मोटा चश्मा,
देख कर पहचान लेता है ,
आलमारी मे रखे पापा के स्वेटर में,
कहाँ गलत हो गये फन्दे।
साफ करना नहीं भूलती मां,
आईने पर लगी धूल।
रात/देर तक पढने की आदत,जानती है माँ
जानती है माँ
पढते पढते ही आती है मुझे नींद।
माँ
रोज करती है मेरे लिये दुआ
मुझे अच्छे सपने आऐं
यह जानते हुए भी
कि/साकार नहीं होते अच्छे सपने।
मां जानती है सब कुछ
मुझे अच्छे सपने नहीं आते
फिर भी कहती है मां
रात देर तक जागना .
अच्छा नहीं होता सेहत के लिये।
मेरी आंखोँ से
माँ
हर रोज लगा लेती है सपनों का हिसाब।
कहती है माँ
पापा भी जागते थे देर रात तक।
और सुबह,
दे देते थे सपनों का हिसाब मां को।
मां
पापा से भी कहती थी,
सेहत के लिये अच्छा नहीं होता,
देर रात तक जागना।
लेकिन पापा ने
कभी नहीं मानी मां की बात
सपने देखते रहे/और
अकेला छोड गये मां को
उसके आंचल मे मेरी तोतली बोली बांध कर।
मां
जानती है सब कुछ
कुछ नहीं कहती
कहती है तो बस ईतना
देर रात तक जागना सेहत के लिये
अच्छा नहीं होता।
महेश राजा
महासमुंद।छत्तीसगढ़।