माँ
माँ
काश मैं भी माँ पर एक ,स्नेहिल कविता लिख पाऊं
शब्दों के बौने अम्बर पे ,कैसे असीमता भर पाऊँ ?
भाषा के सीमित कैनवास पे तस्वीर माँ की गढ़ पाऊं ?
उस आँचल के स्निग्ध सुख का , किस से भला उपमान करूँ उसके सीने की गर्माहट का .कहो कैसे बखान करूँ
संदली बदन की उस खुशबू से लफ़्ज़ों को कैसे महकाऊँ
उसके सीने से लगते ही ,जिस ऊर्जा का उपहार मिले
जिसके हाथों के भोजन का ,नैसर्गिक जो स्वाद मिले
काली स्याही से कागज़ पे ,नूर उनआंखों का छलकाऊँ?
माँ गुंजरित है ओs म में ,माँ व्यापित है व्योम में
स्वर दिया जिसने वाणी को ,शब्दों का संसार दिया
जिसकी स्वयं मैं ही हूँ कवित, फिर कैसे उसको लिख पाऊँ
कविता की नन्ही अंजुरी में ,ममता का सागर भर पाऊँ
काश मैं भी माँ पर एक ,स्नेहिल कविता लिख पाऊं
रचनाकार —ज्योति किरण सिन्हा
सी ९८६ सी सेक्टर बी
फैज़ाबाद रोड ,बादशाह नगर कॉलोनी के सामने
महानगर लखनऊ
9919002767