माँ
माँ
माँ , छोटा सा शब्द
उपमाएँ इतनी , गिनती न हो जितनी
सुबह से शाम , बस काम ही काम
सबसे पहले उठती , सबसे पीछे सोती
चेहरे पर न शिकन , माथे पर न बल
हर दर्द को छिपा , हँसती हर पल।
सहनशक्ति उसकी , इतनी अपार
गुनाह किये बच्चे ,माफी के हकदार ,
सतयुग की बातें ,हो गई हैं पुरानी
श्री राम सा पुत्र ,न आज ये कहानी,
कथनी करनी में अन्तर आ गया है
प्रभु स्वरूप माँ केवल स्वार्थ सिद्ध है।
क्यों भूल जाते हैं हम…
कितनी रातें उसने जागकर काटीं हैं
गीलें में रहकर हमें सूखे में सुलाया है
यह भगवान की माया है
प्रभु आशीर्वाद हमेशा साथ रहे
इसलिए शायद माँ को बनाया है।
माँ तो बस माँ है ..
माँ तो बस माँ है..
नीरजा शर्मा