माँ
हूँ मै खुद के साथ या हूँ तेरे साथ इसका मुझे पता नहीं |
रहती हूँ, जहाँ भी मैं बन लहूँ रगो का मेरी दौडती रहती मुझमे तू हर कही माँ |
“माँ ”
दिल करता है, तेरी साँसों से अपनी साँसें जोड दूँ |
दे अगर इजाजत तेरे संग रहने की तो उस रब से भी नाता तोड दूँ |
” माँ ”
मेरे हर लफ़्ज़ॊ में तू रहती है |
मेरी हर दुअा में ही तू दिख़ती है |
“माँ ”
तेरी पनाहों में थी तॊ दुनिया भी जन्नत लगती थी |
अब तो दुनिया की हर रंगत फ़ीकी लगती है |
“माँ ”
तू थी तो दिल की हर मुराद पुरी लगती थी |
अब तू नहीं तो दिल की हर मुराद अधू री लगती है |
“माँ ”
तेरी यादॊ का सैलाब आँखों से बन आँसू बहता है |
क्यों हरपल तेरी यादॊं का सैलाब मुझे रुलाता है |
“माँ ”
“तुझसे बहुत प्यार करती हूँ माँ ”
” प्रणाम माँ “