माँ
“माँ”…माँ तुम मात्र देह नहीं ,
तुम भाव हो
माँ…तुम ईश का स्वभाव हो
माँ…तुम भगवान के ह्रदय से स्फुटित
सुमधुर स्तुतिगान हो
माँ…तुम वेद ऋचाओं का सार
मंत्रों की जान हो
माँ…तुम घोर तिमिर को चीरती
सुनहरी धूप हो
माँ… तुम नव चेतना
नवविद्या, नवदुर्गा रूप हो
माँ..तुम मेरे जीवन-आँगन में
तुलसी का बिरवा हो
हर तपन में मुस्कुरातीं
माँ…तुम पूजा की दूर्वा हो
माँ …तुम मेरा दर्शन मेरी दृष्टि हो
माँ …चरण तुम्हारे मोक्षद्वार
तुम मेरी सृष्टि हो
✍️तृप्ति नेमा माहुले
बालाघाट (म.प्र)