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19 Nov 2018 · 1 min read

माँ

हे माँ।कठिन है करना,तुम्हे शब्दों में वर्णित।
हूँ निर्मित तुमसे तुमसे ही है,ये जीवन चलित।
हे जननी। सृष्टि का सार तत्व,है तुममे समाहित।
लेकर तुम्हारी कोख से जन्म,हुआ मै अनुग्रहित।
अपने निःस्वार्थ वात्सल्य से,किया मुझे उपकृत।
तुम्हारे स्नेह की ही छाँव है,हुआ जहाँ मैं विस्तृत।
भरती हो पेट मेरा,अपना पेट काटकर भी।
रखती हो ध्यान मेरा,खुद को भूलकर भी।
देने हेतु मुझे पोषण,सहा तुमने शोषण भी।
किया वो पूरा कहा नही जो मैंने कहकर भी।
माँ तुम अधिकारिणी हो,उस उच्च दर्जे की।
होना चाहिए जो,साक्षात ईश्वर से बढ़कर भी।

अविनाश कुमार तिवारी
रायपुर छत्तीसगढ़

9 Likes · 37 Comments · 884 Views
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