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12 Nov 2018 · 1 min read

*** माँ ***

??✨ *** माँ ***✨??
चांदनी रात में जब स्वपन लोक की दुनिया में
चमकते सितारे टिमटिमाते हुए ,
नील गगन में थे सारे तारे चमकते हुए से
उसे गिनते गिनते सोचती हूँ मैं
माँ की ममता की मूरत जैसी प्यारी सी
इसे देखकर ही जन्नत की सैर हो जाती है
सुबह सबेरे उठकर माँ की मूरत देख
बाँहों में झूलकर गले लगा कर लिपट जाना
वो लाड़ प्यार ममता की सागर की धारा सी
बहते हुए धीरे से माँ के आँचल में छिप जाना
शांत स्वरूप मधुर आवाजों में पुकारना
जो स्वंय खुद में खोये सी फिर भी सुखद
एहसास देकर शीतल छाया ममता की छाँव में
वो सर पर प्यार से हाथ फेरकर दुआओं का असर
सारे दुःख दर्द भुलाकर फिर बिसरी यादों में खो जाना
वक्त फिर से लौट आये प्रभु से यह फरियाद करती हूँ
मेरे गिरते हुए हर आँसू की बूंदें माँ के आँचल में गिरकर
निराले अंदाज में आज भी मोहताज से हैं।
?✨?✨ श्रीमती शशिकला व्यास ✨??
# भोपाल मध्यप्रदेश #
??? यह काव्य रचना स्वरचित मौलिक है।

2 Likes · 19 Comments · 552 Views
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