‘माँ’
कहानी जो लिखी हैं मैंने अगर छू जाये आपके दिल को तो बताना जरूर कि कोशिश कैसी की हैं मैंने?
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निकली थी जब मैं आज मंदिर के लिए पहनकर जूतियाँ वो जो पहली और आखिरी बार तोहफे में दी थी मुझे तुमने,ख्यालों में खो कर तुम्हारे चलती जा रही थी रास्ते पर होश आया तब अचानक जब पैरों को मेरे काटने लगी वो जूतियाँ रुकी नहीं मैं चलती ही रही क्यूँकि आस थी एक ये दिल में कि पहुँचा देंगी ये(जूतियाँ)मुझे ईश्वर के दर तक पर ये क्या एक कदम भी न रख पा रही थी अब मैं ,फिर भी सम्भाल कर रख रही थी हर कदम मैं ,जैसे ही रिस कर जमीन पर रक्त आया मेरे पैरों से तो तेज घबराहट थी मेरी माँ के चहरे पे जिद्द कर उन्होंने मुझसे उतरवा ली वो जूतियाँ जिनमें अटके थे प्राण आधे मेरे(क्यूंकि वो तोहफा तुम्हारा दिया हुआ था) बड़ी मुश्किल से ले पाई वो जूतियाँ वो मुझसे और पहना दी अपने हाथों से चप्पल अपनी मुझे और चलने लगी खुद नंगे पैरों से वो उस रास्ते पर,जा तो रही थी मंदिर मैं पर ये क्या? मेरा भगवान तो मेरे साथ ही चल रहा था,पूछ रहा था पल-पल जो मुझसे तकलीफ तो नहीं हो रही बेटा तुम्हें अब इनसे(चप्पलों से)और मैं जो अब तक खोई थी तुम्हारे ख्यालों में रो गई थी उसी पल माँ के त्याग और ममता भरे जज्बातों में, भरे हुए नैनों को समोख लिया मैंने आने न दिया आँखों से बाहर उस पानी को मैंने,नम आँखों से पहुँची दर पे मैं ईश्वर के,पूछना चाहा था मैंने उनसे(ईश्वर से) जिन सवालों को ,जवाब तो हर बात का एक ही दे चुके थे रूप में माँ के मुझे वो मेरे पहुँचने से पहले…..पूरा रास्ता तय किया जिसने नंगे पैरों से और आने नहीं दी एक भी शिकन माथे पे अपने, वो खुद मेरा ईश्वर था जो था माँ के रुप में साथ मेरे ,घर आकर देखभाल में लगा दिया खुद को ऐसे जैसे न जाने कितना बड़ा जख्म खाया हो उसके जिगर के टुकड़े ने ,दर्द तो मुझे उतना नहीं हो रहा था पैरों के जख्म से जितना तड़प रहा था दिल माँ की फ़िकर से(माँ जो कर रही थी मेरी फिकर),बहने को चाह रहा था बार-बार पानी आँखों का ये सोच-सोच कर कि चाहा जितना तुझे मैंने काश जरा सी भी कद्र कर ली होती कभी वक्त रहते उस माँ की मैंने
“तुम क्या वफ़ा करते मुझसे ?..तुम्हारा तो तोहफा भी जफ़ा कर गया मुझसे,चुभन दे गया मुझे और बदले में रक्त लेकर मेरा, कीमत भी अपनी बसूल कर ले गया मुझसे।”
भूल तो बहुत की जीवन में मैंने पर सबसे बड़ी गलती की थी चाह कर अपनी माँ से ज्यादा तुमको मैंने ,आज इस गलती का अहसास हुआ मुझे माँगती हूँ माफ़ी मैं हे माँ मेरी तुमसे ,जिस ईश्वर को ढूँढती थी मैं पत्थर दिल प्रियतम में वो तो था माँ बस तुममें। तुमको इन नम आँखों से कोटी-कोटी वन्दन माँ,होती अगर इजाजत इस देश में चरण तुम्हारे स्पर्श करने की तो सच माँ दिल चाह रहा हैं आज मेरा कि करूँ मैं तुमको माँ चरणवंदन ,करूँ मैं तुमको माँ चरणवंदन।
wrt by Ritika(preeti) Samadhiya….A Good Human Being…..✍???