माँ
कविता नहीं मेरे लिए
तुम अहसास हो
माँ
दूर हो मुझसे चाहे जितनी,
फिर भी हरपल दिल के पास हो माँ।
मैं तो हूँ बस एक माटी की मूरत,
तुम मेरे भीतर चलती श्वास हो माँ।
मेरे कठिन वक्त में बंधाती हो हिम्मत
जगाती तुम मुझमें विश्वास हो माँ।
ईश्वर को तो कभी देखा नहीं,
उसकी सूरत का सा आभास हो माँ।
जग का तो मैं जानूं ना,
मेरे लिए तो तुम सबसे खास हो माँ।
– रश्मि खरबंदा
चंडीगढ़