माँ (साहित्यपीडिया काव्य प्रतियोगिता)
मेरे हालात रंक से भी बदतर हो गये है,
जहां तूने रानी बनाकर विदा किया था माँ।
फटी चटाई पर सोती है तेरी रानी बिटिया,
उस पलंग पर नहीं जो दहेज में दिया था।
हारकर संदेश भेज रही हूँ , मेरी सार लेलो,
तन के साथ साथ धन के भी लोभी है माँ।
मेरा ससुराल किसी कैद खाने से कम नही,
कोई नहीं सुनता मेरी, वो भी मनमौजी है माँ।।
भाई को भी बताना तेरी बात सच हो गयी,
कहता था तुझे शराबी सईंया ढूंढ के दूंगा।।
बाबू जी को भी कहना घर भी गिरवी रख दे,
चेताया है दमाद ने, ‘नहीं तो तलाक दे दूंगा’।।
माँ कोई काम नहीं आये तेरे वो सोने के कंगन,
जिन्हें बेचकर आपने ढेर सारा दहेज दिया था।
और नही काम आयी विचोलिये को दी अंगूठी,
जिसने लड़के को सभ्य, सुशील करार दिया था।।
जल्दी से सार लेना कहीं ये सन्देश आखरी न हो,
मुझे घर से निकालने की साजिश चल रही है माँ।
कहीं जला ही न दे, कई बार गैस खुला रह गया,
बस यूँ समझना कि अंतिम सांस चल रही है माँ।
-:-स्वरचित-:-
सुखचैन मेहरा
रायसिंह नगर, जिला श्री गंगानगर, राजस्थान
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