” माँ “
?माँ ?
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सोना चाहिए,ना चांदी चाहिए,ना बंगला चाहिए।। ना गाड़ी चाहिए मुझको “माँँ” का साथ चााहिये।।
रातदिन हरपल सिर्फ़ “माँ” का अहसास रहता है।
“माँ” मेरी हो या आपकी “माँ” का प्यार सच्चा होता है।।
रुके तो चाँद चले तो हवा जैसी वो तो “माँ” ही है।
धूप में छाँव जैसी मेरी हो या आपकी “माँ” तो “माँ” है।।
सर्वप्रथम “माँ” पूर्ण गुरु है गुरु की पहचान भी “माँ” है।
“माँ” गुरु के पास ले जाती “माँ” ही गुरू से मिलाती है।।
गुरु से पहले “माँ” ही है गुरू समान “माँ” ही ईश्वर है।
शब्द निशब्द हो जाएँ “माँ” को कैसे मैं व्यक्त कर दूँ।।
शब्दों में पिरोऊँ आँसुओं को, हर शब्दों में रक्त भर दूँ।
“माँ” का माथा चंदन कर दूँ ,हर “माँ” को वंदन मैं कर दूँ।।
शब्द भी निशब्द हो जाएँ ,”माँ” को मैं दिल में बंद कर दूँ।
ब्रह्मांड छोटा हो जाएँ “माँ” का बखान कैसे मैं कर दूँ।।
जीवन सारा अर्पण कर दूँ ,सुमनश्रद्धाश्रु अर्पण कर दूँ। हर शब्द निशब्द हो,”माँ” के चरणों में नतमस्तक कर दूँ।।
“माँ” के चरणों की धूल से,स्वयं का मस्तक सजा दूँ। शब्द भी मुख से कम पड़ जाएँ शब्दों को निशब्द कर दूँ।।
ईश्वर को नहीं देखा कभी “माँ” को ही ईश्वर मैं समझूँ।
अपने को अर्पण कर “माँ” चरणों मेंआत्मसमर्पण कर दूँ।।
??विनोद शर्मा ?
दिल्ली, जिला शाहदरा
दिनाँक,09, 2018