माँ
आज फिर अपनी मां की
गोद में सोने को मन करता है
बिन बताए आज फिर
रोने को मन करता है
आज फिर बचपन की यादों में
खो जाने को दिल करता है
वह घुटनों के बल चलते हुए
नन्हें- नन्हें कदम
चलने को मन करता है
आज फिर अपनी मां की लोरी
सुनने को मन करता है
आज फिर अपनी मां की
उंगली पकड़कर
चलने को मन करता है
क्या हुआ बड़े हो गए हैं तो
आज फिर अपनी मां के हाथों का
खाने को मन करता है
उल्झी है जब से जिंदगी- जिंदगी बनाने में
आज फिर अपनी मां के लिए
कुछ कर गुजरने का मन करता है
Poem by:
श्याम सिंह बिष्ट
डोटल गाँव
उत्तराखंड