माँ
“माँ”
मैं जब भी सोचती अच्छा ही सोचती,
दुःख-सुख में एक समान रहती,
मैं कितना सहती, फिर भी मैं खुश रहती,
मैं ना करती किसी से शिकायत,
ना ही करती गिला शिकवा,
क्योंकि मुझे जीना है…
अपने व अपनों के लिए बे-परवाह!!!
“माँ”
मैं जब भी सोचती अच्छा ही सोचती,
दुःख-सुख में एक समान रहती,
मैं कितना सहती, फिर भी मैं खुश रहती,
मैं ना करती किसी से शिकायत,
ना ही करती गिला शिकवा,
क्योंकि मुझे जीना है…
अपने व अपनों के लिए बे-परवाह!!!