माँ
अवधूत के ह्रदय में नित गूँजती गुँजन हैं माँ !
अलख सृष्टी के आशाओं की नित्य निरंजन हैं माँ !
फुलों के अंतरंग में फ़ुहारती मधु गंगा हैं माँ !
सुगंध से निखरती सुगंध की सुंदरता हैं माँ !
सूर्यमा की किरणों से खिलता शुद्ध आनंद हैं माँ !
श्वेत हिमनगों से मुस्कुराता दिव्य आलोक हैं माँ !
शशी से उमड़ता जीवन का अमृतरस हैं माँ !
पत्तों के तन पे सजती रोशनी की कविता हैं माँ !
मिट्टी के आँखों में पनपता बीज़ का सपना हैं माँ !
रात के गर्भ में सोया उषा का नया सवेरा हैं माँ !
विराट विश्व के गतिशीलता की परिभाषा हैं माँ !
सृष्टी के संगीत की तू सगुन संगीतकार हैं माँ !
“छोटे-से मन से कैसे तेरे अनंत गुण गाऊं माँ !
अच्छा यही हैं की औरों की सुनता मैं मौन रहू माँ ! ”
—-उमेश नारायण चव्हाण
कर्जत, रायगड, (महाराष्ट्र)