माँ
हे माँ ! तेरे चरणों में नित नत-नत वन्दन है,
मैं तो बस माटी हूँ अम्मा तू चंदन है।
तेरे लहू का हर कण मेरी देह में रचा बसा
उर आँखें आत्मा सब तुझसे ही प्राण रिसा ।
तू तपसी है अम्मा तेरे तप का सार हूँ मैं
तेरे अमृत से जीवित वरना निस्सार हूँ मैं।
तू ही मेरी धरती जीवन – ज्योति प्रदाता तू,
मैंने तो मात्र लिया सर्वश दाता माँ तू।
अस्तित्व मेरा तुझसे है गर्व मुझे इसका
सबकी हो ऐसी माँ सौभाग्य मिले इसका।
पीकर अमृत तेरा पाया मैंने जीवन
जिसे दुग्ध कहे दुनिया पोषित मेरे तन – मन।
माँ से निर्मित चेतन माँ तू ही परमेश्वर
बस देखा मैंने तुझे देखा न कभी ईश्वर।
साक्षात प्रकृति तू ही प्रत्यक्ष ईश तू ही
तेरा आँचल स्वर्ग मेरा सुख -शान्ति सरल तू ही।
किस लोक की वासी है माँ बहुत उदासी है
सद्बुद्धि हमें देना आत्मा अविनाशी है।
कामना यही माँ है जब तक जीवन-जां है
“शुभम” कर्म करूँ सारे देह-प्राण का साझा है।
रचयिता : डॉ. भगवत स्वरूप”शुभम”
सिरसागंज (फ़िरोज़ाबाद)