माँ
माँ, शब्द नहींं , भाव है निस्वार्थ प्रेम का ।
माँ, मज़बूत आधार है, स्रृष्टि रूपी वृक्ष का ।
माँ, पहली पाठशाला है , जीवन की ।
माँ, अंंतिम चाह, अनुभव की ।
माँ, बच्चे की निश्चिंतता, माँ घर का चैन ।
माँ, दुख का संबल ,माँ खुशी के भीगे नैन ।
माँ, आईना कड़वे सच का, माँ मीठी – सी रैन ।
माँ, रस है, माँ रंग है, माँ सुंदरता की पहली अनुभूति ।
माँ, संस्कृति और संस्कारोंं की मौन अभिव्यक्ति ।
माँ, कारण है और समाधान भी ।
माँ, गलती की स़जा और अच्छाई का इनाम भी ।
अधूरी है माँ के बिना हर कहानी ।
क्योंंकि माँ कारण भी है और पूर्ण विराम भी ।
शालिनी शर्मा
दिल्ली