माँ
सृष्टि नूतन सर्जना माँ।
अति मधुर रव गर्जना माँ।
अंक आश्रय है अतुल।
पीर भी जिसमें प्रफुल।
है निडरता की सतह।
विश्व भी जिससे फतह।
व्याधियों की वर्जना माँ।
सृष्टि नूतन सर्जना माँ।
है अमित ममता भरी।
प्रेम की निश्छल झरी।
विश्व निधि सर्वस्व है।
माँ सकल वर्चस्व है।
है अमिय की भर्जना माँ।
सृष्टि नूतन सर्जना माँ।
सर्जिका संस्कार की।
नीति पथ संसार की।
भ्रष्ट पथ से हों तनुज।
दे हृदय का अंग तज।
न्यायकर्त्री तर्जना माँ।
सृष्टि नूतन सर्जना माँ।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुरकलाँ, सबलगढ़(म.प्र.)