माँ !
तेरा समर्पण शब्दों में, माँ !
कह या कोई रच सकता ?
तेरे प्रेम की अनुभूति निराली
इससे क्या कोई बच सकता?
ब्रम्हांड निःशब्द हो जाता है
तेरी ममता का वर्णन करने को
नहीं जगह कोई ले पाया है
तेरे प्रेम की रिक्तता भरने को ।
तेरी लोरी है संगीत जगत् का
तेरी थपकी का आनन्द अपार
तेरा स्नेहिल चुम्मन बन जाता
प्राणों का एक सुखद सार ।
तू है प्रकृति की सृजन शक्ति
तेरे आँचल की वात्सल्य भक्ति
तू है करूणा की जीवन्त मूर्ति
भरती शैशव में नव स्फूर्ति ।।
© “अमित”
झाँसी, उ. प्र.
मो. 9455665483