माँ
क्योंकि मेरे घर में मेरी माँ है
★★★★★★★★★★★★
सुबह के चार बजे
ब्रह्म मुहूर्त के आगमन के साथ
शुरू हो जाती है हलचल,
उठना, उठाना, हिदायतों
का दोहराना,
न उठने पर मीठी झिड़कियों की फुहारें
कितना अच्छा लगता है-
क्योंकि मेरे घर में मेरी माँ है।
बछड़े का रंभाना
गाय का दुहना फिर
चूल्हा जलता है, दूध उबलता है,
रोटियां पकती है एक-एक कर,
उबलती खीर की महक से
महक उठता है पूरा घर आंगन,
बैठते हैं सब परिजन और
शुरू होता है भोजन का रसास्वादन,
कभी नमक की कमी तो कभी
मिर्ची का ज्यादा होना,
बावजूद इसके लगता है
अमृत पान कर रहे हैं,
आत्मा को सुकून मिलता है –
क्योंकि मेरे घर में मेरी माँ है।
सुबह से लेकर शाम तक
काम ही काम
उसके जीवन का अंग बन गया है,
पिता की डांट, सास की फटकार
सहने की आदी हो गई है,
चेहरे पर दु:ख, तकलीफ की
शिकन तक नहीं,
पीड़ाएँ कोसों दूर है उससे
पर वह सब के नजदीक है,
चूल्हा-चौका, साफ-सफाई
घर परिवार की तमाम देखरेख
हर सदस्य का ख्याल रखना
उसने अपनी नियति बना लिया है,
पूरा घर दमकता है,
पूरे घर का सन्नाटा टूट जाता है
उसके एक-एक कार्यकलाप से ,
चेहरे पर सदा मुस्कान सजाकर रखती है,
वातावरण में असीम सुख है –
क्योंकि मेरे घर में मेरी माँ है।
हाथों के छाले, पैरों में फटी बिवाई
नहीं रोक पाती है उसे
अपने गृहस्थ धर्म की जिम्मेदारियों से,
सबको खिला कर बचा खुचा
खाने से भी कभी उसे शिकायत नहीं है,
पौष की ठंडी रातों में उठ कर
बच्चों को रजाई उड़ाना
उसके मातृत्व में शुमार है,
किसी के बीमार होने पर
पूरी रात आंखों में काट देने में भी
वह कोताही नहीं बरती,
उसका कलेजा तड़प उठता है जब औलाद को परेशान देखती है,
ईश्वर ने एक ही नायाब तोहफा दिया है,
तमाम प्राणी जगत को और वह है
“मां, सिर्फ माँ”
माँ से ही हर घर परिवार स्वर्ग है
स्वर्ग का सुख है,
मैं हमेशा निश्चिंत रहता हूं –
क्योंकि मेरे घर में मेरी माँ है।
★★★★★★★★★★★★
मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि यह कविता मेरी स्वरचित है।
मदन मोहन शर्मा ‘सजल’
म.न. 12-G-17, बॉम्बे योजना, आर.के.पुरम, कोटा, (राजस्थान)
पिन- 324010
मोबाइल न. 9982455646
ई-मेल – madanmohan589@gmail.com