माँ (ग़ज़ल)
बहर: 2122 1212 22
दर्द जब जब मुझे ज़रा आया
नाम कोई न माँ सिवा आया ।
आज रौशन चराग हुए घर के
माँ जो लौटी लगे ख़ुदा आया ।
जाग के ख्बाब जो सजाती थी
बेरहम मुफ़लिसी बता आया ।
छांव थी जो कड़ी दुपहरी की
वो शज़र ख़ाक में मिला आया ।
माँ की आंखों में गर जो आंसू हो
दिन कोई उससे क्या बुरा आया ।
सीख के उड़ने के हुनर माँ से
छोड़ सब छूने आसमां आया ।
जितेन्द्र शर्मा
अहमदाबाद