माँ होती तो कैसी होती
माँ होती तो ऐसी होती,
माँ होती तो वैसी होती,
जीवनभर अनबुझी पहेली,
माँ होती तो कैसी होती ।
क्या वत्सल गो माता जैसी,
या नीरद में निहित नमी सी,
शायद धरती के तल जैसी,
फिर भी माँ होती तो कैसी ।
कभी रूठता मुझे मनाती,
अधरों पर मुस्कान थिरकती,
नयनों से जल-बिन्दु बहाती,
माँ होती तो ऐसी होती ।
मेरी रुग्ण अवस्था में वह,
बैठी रहती,सो ना पाती,
पलकों मे उत्सुकता होती,
चिन्तित होती,रो ना पाती ।
विषम परिस्थिति होने पर भी,
भूखे – पेट न सोने देती,
चाहे खुद भूखी रह जाती,
माँ होती तो ऐसी होती ।
ममता,निष्ठा, और प्रेम से,
वह जीवन का पाठ पढाती,
संस्कारों में ढाल ढाल कर,
सही अर्थ में मनुज बनाती ।
वैसा सुन्दर भले ना होता,
अन्तर की सुन्दरता होती,
होता एक सितारा भू पर,
यदि मेरी भी माँ श्री होती।
होती जीवित यदि धरती पर,
मेरी माँ भी ऐसी होती।
–मौलक एवम स्वरचित–
अरुण कुमार कुलश्रेष्ठ
लखनऊ (उ.प्र)