माँ ही गुरू माँ ही ज्ञान..
माँ ही गुरू माँ ही ज्ञान
ईश्वर का उत्तम वरदान
पाठशाला तू ही तो है
इस जहाँ से मैं अंजान
तू मिरी दुनियाँ का नूर
बिन तेरे ये जग वीरान
तूने दिया इतना प्यार
बाक़ी रहे ना अरमान
विनती यही रब से बनाए
हर जनम तेरी संतान
आँचल तिरा रखे महफूज़
प्यार दे तेरी मुस्कान
तू रब नहीं कम भी नहीं
तुझसा नहीं कोई महान
सुरेश सांगवान’सरु’