“माँ, मैं वापस घर आना चाहता हूँ।”
भाग-दौड़ की इस दुनिया से
थोड़ा सुकून पाना चाहता हूँ,
माँ,
मैं वापस घर आना चाहता हूँ।
यहाँ एयर-कंडीशनर रूम है,
पर वो सुकून नहीं जो तेरे आँगन में थी,
यहाँ बिस्तर तो बहुत नर्म है,
पर वो नींद नहीं जो तेरे गोद में थी,
माँ, तेरी लोरी सुन-सुन के,
फिर से बच्चा हो जाना चाहता हूँ,
तेरे ठंडे आँचल की छाँव,
गहरी नींद सो जाना चाहता हूँ,
माँ,
मैं वापस घर आना चाहता हूँ।
यहाँ खाने को पूरे बाजार में
बहुत-सी चीज़ें मिलती है,
काजू, पनीर, मावा, जलेबी,
पर इन सब से भूख कहाँ मिटती है?
लापरवाहियाँ मेरी, फिक्र तेरी,
गलतियां मेरी, नाराज़गी तेरी,
माँ, तेरी डाँट सुनना चाहता हूँ,
फिर तेरे हाथों की मुलायम रोटी,
तेरे हाथों ही खाना चाहता हूँ,
मैं अपनी भूख मिटाना चाहता हूँ,
माँ,
मैं वापस घर आना चाहता हूँ।
क्यों हुए हम इतने बड़े,
कि अब छोटा होना भी मुश्किल है!
क्यों आए इतने दूर,
कि तुमसे मिलना भी मुश्किल है?
माँ,
लग के गले से तेरे मैं
जी भर के रोना चाहता हूँ,
गिर के तेरे कदमों में मैं,
ज़न्नत को पाना चाहता हूँ,
माँ,
मैं वापस घर आना चाहता हूँ।?
-सरफ़राज़