“माँ…मेरी आस्था मेरा विश्वास”
मैं क्या मेरा वजूद क्या,
मेरी आस्था मेरा विश्वास तू।
दर्द के रेत में भी,
स्नेह की बहती नदी तू।
घने कोहरे में,
आस की मद्धम रोशनी तू।
तेरे अंक से लिपटकर,
मिल जाये एक ऊर्जा नयी ।
जिन्दगी भर शांत नदी सी,
बहती ही रही।
तेरे भीतर दुनिया कोई,
साथ चलती रही।
नींद नहीं तेरे आँखों में,
पर छोटे छोटे सपनें कई।
रिश्तो के धागों से बुनकर,
घर आँगन को सजाई तू।
हम लय गति से भटकें जब,
तब तब मादल होती तू।
मेरा सारा जीवन तेरे नाम।
तुझ पर ही मेरा सब कुर्बान।।
© डा.निधि श्रीवास्तव
(ग्रेटर नोएडा)